हरिद्वार, 11 अप्रैल। परम पूज्य स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से “छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ के तीसरे दिन का शुभारम्भ पतंजलि विश्वविद्यालय प्रांगण स्थित सभागार में हुआ जहाँ आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया।
कथा में स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने परमात्मा स्वरूप शिवाजी महाराज की कथा का निरूपण करते हुए बताया कि शिवाजी की बीजापुर यात्र उन्हें अन्तर्मुख करती गई। वहाँ उन्होंने भवन मंदिरों को देखा, चौराहों पर कटती गायों को देखा, डरे हुए किसानों को देखा, घसीट कर ले जाती हुई ललनाओं को देखा, जिससे उनके मन में काफी कष्ट हुआ।
उनके मन में बार-बार यह प्रश्न आता था कि मैं कौन हूँ, मेरा परिवार कैसा है, मेरा समाज कैसा है, मेरा राष्ट्र क्या है? मेरे कुल की परम्पराएँ क्या हैं? उन परम्पराओं का पालन हो रहा है या विध्वंस हो रहा है? जीजा माता उन्हें बार-बार कहती थीं कि इस पर विचार करते रहो। इस प्रकार चिंतन करना ही सबसे बड़ा चिंतामणि होता है। वेदांत में चिंतन की बड़ी महत्ता है, वहाँ भी तो चिंतन किया जाता है जो जीवन को पूर्णतः बदल देता है। माता जीजा बाई के दिए संस्कार ही थे जो उन्हें अपने देश, समाज व राष्ट्र के प्रति जागरूक रखते थे।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति व परम्परा के ध्वजवाहक, महान योद्धा, संस्कृति के संरक्षक छत्रपति शिवाजी महाराज की कथा के पावन श्रवण की गंगा पतंजलि विश्वविद्यालय से प्रवाहित हो रही है। उन्होंने कहा कि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के तप, पुरुषार्थ और शुभ संकल्प से पतंजलि के रूप में यह पवित्र, विशाल एवं दिव्य-भव्य संस्थान निर्मित हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के गौरव, शास्त्र पाठ में पारंगत, जिनके हृदय में राष्ट्र के प्रति विशेष भावनाएँ हैं ऐसे पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से कथा सुनना स्वयं में दिव्यता प्रदान करता है।
आचार्य जी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी की छवि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज में दिखाई देती है। वे हमारे सुखद भविष्य के लिए कठिनाइयाँ मोल ले लेते हैं। कभी-कभी कुछ लोगों को लगता है कि स्वामी जी विवाद क्यों लेते रहते हैं। स्वामी जी विवाद नहीं लेते अपितु कुछ दुष्ट आततायी राक्षस अलग-अलग कालखण्डों में, अलग-अलग रूपों में हमारे सामने प्रकट होते हैं। संत वही है जो आततायीयों से पूरे देश व राष्ट्र को बचाने के लिए स्वयं सामने आता है। श्रद्धेय स्वामी जी अग्रणी भूमिका में आकर हमारी रक्षा के दायित्व का निर्वहन करते हैं। वो सारे घात, प्रतिघात, चोट स्वयं सहन करते हैं जिससे पूरा देश चैन की नींद सो सके, संस्कृति और संस्कृति के उदात्त वैज्ञानिक पहलुओं का लाभ ले करके अपने परिवार व समाज को आगे बढ़ा सके। हम सभी शिवाजी महाराज व पूज्य स्वामी जी की भांति योद्धा बनें, महापुरुषों से प्रेरणा लेकर उनके जैसे बनने का प्रयास करें और यदि उनके जैसे न बन पायें तो उनके जीवन से प्रेरणा लेकर उनके अनुगामी बनें।
कार्यक्रम में भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी श्री एन.पी. सिंह, पतंजलि विश्वविद्यालय की मानवीकी संकायाध्यक्षा डॉ. साध्वी देवप्रिया, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल, भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेश ‘भारत’ व स्वामी परमार्थदेव, पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव सहित सभी शिक्षण संस्थान यथा- पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्यगण व विद्यार्थीगण, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनें तथा पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।

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