मुंबई। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’ गाकर हर बार लोगों को रुला देने वाली 138 करोड़ भारतीयों की ‘लता दी’ रविवार के सूरज के साथ अस्ताचल को चली गईं। 92 साल की देश भर की ‘दीदी’ कहलाने वाली लता मंगेशकर का निधन रविवार सुबह ब्रीच र्केडी अस्पताल में कोरोना और न्यूमोनिया के चलते हुआ। चार हफ्ते तक अस्पताल में रही लता मंगेशकर ने आखिरी बार होश में आने पर भी दो दिन पहले अपने पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के गीतों के साथ सुर मिलाने की कोशिश की। एक दिन पहले पूजी गईं सरस्वती प्रतिमाएं जब रविवार को विसर्जन को निकलीं तो इस बार मां सरस्वती अपनी आजीवन साधक को भी अपने साथ लेती चली गईं। लता मंगेशकर को अंतिम विदाई देने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। अंतिम संस्कार के समय देश की नामी गिरामी हस्तियों का जमावड़ा यहां शिवाजी पार्क मैदान में देखा गया।
दक्षिण मुंबई की गलियों ने लता मंगेशकर का संघर्ष देखा है। लता मंगेशकर की अंतिम यात्रा उनके निवास प्रभा कुंज से जब शिवाजी पार्क के लिए निकली तो चंद मिनटों का ये रास्ता तय करने में करीब डेढ़ घंटे का समय लग गया। रास्ते के दोनों तरफ मुंबई और महाराष्ट्र के अलग अलग क्षेत्रों से पहुंचे लोग श्रद्घावनत दिखे। किसी के हाथों में लता मंगेशकर की तस्वीर तो किसी के हाथों में पुष्पगुच्छ। कुछ तो अपने बच्चों को भी साथ ले आए, ये दिखाने कि जिस युग में तुम्हारा जन्म हुआ, उसे अब लता युग के नाम से जाना जाएगा। देश की सात पीढ़ियों की पसंदीदा गायिका रहीं लता मंगेशकर को अंतिम विदाई राजकीय सम्मान के साथ दी गई। भारतीय सेना के तीनों अंगों थल, नभ और नौसेना ने उन्हें सलामी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लता मंगेशकर को श्रद्घांजलि देने के बाद उनकी देह की परिक्रमा भी की और शोक संतप्त परिजनों को ढांढस बंधाया।
गुलजार कहते हैं, ‘वह बहुत स्नेहमयी थी। सहज थीं। सरल थीं। कोई भी हो छोटा या बड़ा। सबसे प्यार से मिलना। पूरा सम्मान देना और सबसे बड़ी बात कि किसी भी छोटे को छोटा न महसूस होने देना उनकी शख्सियत की बहुत बड़ी खासियत थी।’ गुलजार का ही लिखा गाना, ‘नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदला जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे’ रविवार के पूरे दिन न्यूज चौनलों पर बजता रहा। गुलजार के मुताबिक, ‘ये गाना जब मैंने उन्हें दिया तो कहा था कि ये आपका अटोग्राफ सन्ग है।’ शिवाजी पार्क पहुंचे हर शख्स के पास लता मंगेशकर से जुड़ी ऐसी ही कोई न कोई याद जरूर थी। किसी को उनका गाना ‘लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो ना हो’ बार बार याद आ रहा था तो कोई ‘रहें ना रहें हम़.’ नम आंखों से गा रहा था।
तिरंगे में लिपटी लता मंगेशकर के चेहरे पर अपनी अंतिम यात्रा में भी एक अलग ओज नजर आया। माथे पर चंदन और कुमकुम का टीका और साथ में पूरा परिवार। सेना की जीप रास्ता तो दिखा रही थी लेकिन सेना का ट्रक भी बस मुंबई की सड़कों पर रेंग ही पा रहा था। ये वही सड़कें हैं जिन पर लता मंगेशकर कई कई किमी पैदल चलकर स्टूडियो तक पहुंची। इन्ही सड़कों की किनारे लगी बेंचों पर उन्होंने तमाम दोपहरें इस इंतजार में बिताईं कि शाम हो तो शोर थमे और उनके गाने की रिकर्डिंग शुरू हो सके। और उसी शहर मुंबई की रविवार की शाम का शोर भी फीका लग रहा था। मुख्यमंत्री उद्घव ठाकरे बहुत उद्वेलित दिखे। उनके बेटे आदित्य ठाकरे सुबह से ही लता मंगेशकर की अंतिम यात्रा के इंतजाम में हर पल शामिल रहे।

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